रोक पाया न कोई गुलामी जिन्हें-03-Oct-2023
रोक पाया न कोई गुलामी जिन्हें
राष्ट्रहित में किये हैं जो हर एक करम
जो स्वार्थ से हो परे मिल बढ़ाये कदम
ना हो मरने का भय चल पड़े हो अजय
जिनके कर्मो का है आज का यह विजय
पुष्प उनको समर्पित,सलामी उन्हें,
रोक पाया न कोई गुलामी जिन्हें।
सिर से ले पांव तलक,रक्त रंजित हुए
जोश भरते हुए ना वो विखंडित हुए
जो दर्द सहता रहा पर न टूटा कभी
जिसने सींचा लहू से हो सरहद जमीं
है समर्पित सदा -ए- जवानी उन्हें,
रोक पाया न कोई गुलामी जिन्हें।
आंधियों की तरह ,बढ़ चले थे जो कदम
थे न थकते कभी बोल वंदे मातरम्
आज जिनके ही कर्मो से, आजाद हम
है गाॅंव से ले शहर देश आबाद हम
छूके उड़ती है खुशबू सुहानी तुम्हें
रोक पाया न कोई गुलामी जिन्हें।
जो जूझते जूझते मुश्किलों से लड़े
गोलियों को सहे वो बीच रण में खड़े
वो जान दे दी मगर हार माने नहीं
मरते - मरते भी वो गाए गाने वही
जो बनाया अमर वो कहानी तुम्हें
रोक पाया न कोई गुलामी जिन्हें।
याद आता रहा, गांव का परिवार का
खेत खलिहानों का,अपनों के प्यार का
फिर भी लड़ते रहे आगे बढ़ते रहें
देश का भाग्य युगों-युग तक लिखते रहें
है बहादुरपुरी की , सलामी उन्हें
रोक पाया न कोई गुलामी जिन्हें।
रचनाकार
रामबृक्ष बहादुरपुरी
अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश
hema mohril
05-Oct-2023 09:56 AM
V nice
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Varsha_Upadhyay
04-Oct-2023 08:16 PM
Nice one
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madhura
04-Oct-2023 06:48 PM
Awesome
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